गीता प्रेस, गोरखपुर >> नारद पुराण नारद पुराणगीताप्रेस
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नारद पुराण में कल्याणकारी श्रेष्ठ विषयों का उल्लेख है। इसमें वेदों के छओं अंगों का विशद वर्णन तथा भगवान की सकाम उपासना का भी विस्तृत विवेचन है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
।।श्रीहरि:।।
निवेदन
भारतीय संस्कृत-साहित्य अनन्त-ज्ञान-गरिमा से परिपूर्ण है। उसके असीम
ज्ञान-सिन्धु से उपलब्ध हुए पुराणों को अमूल्य रत्नराशि के रूप में
अत्यन्त सम्मान और गौरवशाली स्थान प्राप्त है। इसीलिए पुराणों के सेवन
(श्रवण, अनुशीलन)-को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है।
गीताप्रेस ने ‘कल्याण’ के माध्यम से विशेषांकों के रूप में समय-समय पर अनेक पुराणों को जनहित में प्रकाशित किया है। इन्हें सर्वजन-सुलभ कराने के उद्देश्य से इनका केवल सरल-हिन्दी-अनुवाद उपलब्ध कराया गया। पश्चात् श्रद्धालु पाठकों की माँग पर इधर मैं इनका कुछ वर्षों से पुनर्मुद्रण भी हुआ है और आगे भी इस क्रम को बनाये रखने का विचार है।
‘कल्याण’-वर्ष 28वें के विशेषांक के रूप में ‘नारद-विष्णुपुराणांक’ (सन् 1954 ई. में) प्रकाशित हुआ था। बाद में यह पुनर्मुद्रित भी किया गया। ‘नारदपुराण’ तथा ‘विष्णुपुराण’ एक ही में संयुक्त होने से इसका कलेवर पर्याप्त बड़ा (लगभग आठ सौ पृष्ठों का) था। फलस्वरूप इसका अध्ययन समयसाध्य और पाठकों के लिये असुविधाजनक था। अत: इसे ध्यान में रखते हुए प्रेमी पाठकों के सुविधार्थ इसे अब अलग-अलग दो भागों में प्रकाशित करने का विचार किया गया है। तदनुसार यह केवल ‘नारदपुराण’ आप सबकी सेवा में प्रस्तुत है।
गीताप्रेस ने ‘कल्याण’ के माध्यम से विशेषांकों के रूप में समय-समय पर अनेक पुराणों को जनहित में प्रकाशित किया है। इन्हें सर्वजन-सुलभ कराने के उद्देश्य से इनका केवल सरल-हिन्दी-अनुवाद उपलब्ध कराया गया। पश्चात् श्रद्धालु पाठकों की माँग पर इधर मैं इनका कुछ वर्षों से पुनर्मुद्रण भी हुआ है और आगे भी इस क्रम को बनाये रखने का विचार है।
‘कल्याण’-वर्ष 28वें के विशेषांक के रूप में ‘नारद-विष्णुपुराणांक’ (सन् 1954 ई. में) प्रकाशित हुआ था। बाद में यह पुनर्मुद्रित भी किया गया। ‘नारदपुराण’ तथा ‘विष्णुपुराण’ एक ही में संयुक्त होने से इसका कलेवर पर्याप्त बड़ा (लगभग आठ सौ पृष्ठों का) था। फलस्वरूप इसका अध्ययन समयसाध्य और पाठकों के लिये असुविधाजनक था। अत: इसे ध्यान में रखते हुए प्रेमी पाठकों के सुविधार्थ इसे अब अलग-अलग दो भागों में प्रकाशित करने का विचार किया गया है। तदनुसार यह केवल ‘नारदपुराण’ आप सबकी सेवा में प्रस्तुत है।
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